वृहस्पतिवार व्रत कथा की महिमा

वृहस्पतिवार व्रत कथा की महिमा वृहस्पतिवार व्रत कथा की महिमा | Story and Important of  Thursday Fasting Vrat   प्राचीन काल में एक बड़ा ही प्रतापी और धनी राजा राज्य करता था वह प्रतिदिन मंदिर में दर्शन करने जाता था। राजा नियमपूर्वक प्रत्येक गुरुवार को व्रत एवं पूजन भी करता था। वह ब्राह्मण और गुरु की सेवा किया करता था। राजा के पास से कोई भी निराश होकर नहीं लौटता था। वह जितना धन कमाता था उतना ही जी खोलकर दान भी करता था किन्तु उसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी। वह किसी को एक पैसा भी न देती थी और न ही देने देती थी। रानी राजा को भी दान करने से मना किया करती थी एक समय कि बात है कि राजा शिकार खेलने के लिए वन गए हुए थे घर पर केवल रानी और दासी थी।  उसी समय वृहस्पति देव एक साधु का रूप धारण कर राजा के द्वार पर भिक्षा मांगने गए। रानी से भिक्षा की याचना की। रानी बोली हे ! साधु महाराज में इस दान और पुन्य से परेशान हो गई हूं। मेरे से तो घर का ही कार्य ख़त्म  नहीं होता इस कार्य के लिए तो मेरे पतिदेव ही बहुत है अब आप इस प्रकार की कृपा करें कि मेरा सब धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं।

वृहस्पति भगवान् बोले हे ! देवी तुम तो बड़ी विचित्र हो संतान और धन से कोई दुखी नहीं होता है इसे तो सभी चाहते हैं इस संसार में पापी परुष और स्त्री भी पुत्र और धन की इच्छा करता है। यदि आपके पास अधिक धन है तो उस धन का प्रयोग शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ, जगह जगह प्याऊ लगाओ, अशक्त व्यक्ति को दान दो ऐसा करने से आपको धन-धन्य की वृद्धि के साथ साथ मोक्ष की प्राप्ति होगी परंतु साधु की इन बातों से रानी को खुशी नहीं हुई।

पुनः रानी बोली कि मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान देने में लूटा दूं। वैसे धन से क्या लाभ जिसे संभालने में ही मेरा सारा समय नष्ट हो जाए।

वृहस्पति देव बोले – यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करो। प्रत्येक गुरुवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, स्नान करते समय केशों को धोना, अपने पति को हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस मदिरा खाना, कपड़ा धोबी के यहां धुलने देना। यदि सात बृहस्पतिवार तुम ऐसा करती हो तो तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। इस वचन बोलकर बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए।

धन नष्ट के बाद रानी का जीवन 

वृहस्पतिदेव के कथनानुसार रानी वैसा ही करने लगी ऐसा करते हुए केवल तीन बृहस्पतिवार ही हुए थे कि राजा के समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई। भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा। तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे ! रानी तुम यहीं रहो, मैं दूसरे स्थान में जाकर कोई काम करता हूं। यहां पर सभी लोग मुझे जानते हैं इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता। ऐसा बोलकर राजा परदेश चला गया।  वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेच कर अपना जीवन व्यतीत करने लगा। राजा के परदेश जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगी।

एक बार जब रानी और दासी दोनों को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा तब रानी ने अपनी दासी से कहा- हे ! दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बहुत धनवान तुम उसके पास जाकर पैसे और खाने की सामग्री लेकर आओ ताकि थोड़ी-बहुत गुजर-बसर हो जाए।

दासी का रानी के बहन के पास जाना

रानी के कथनानुसार दासी रानी की बहन के पास गई। संयोग से उस दिन  वृहस्पतिवार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी। दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया।  जब दासी को रानी की बहन से कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला तो वह बहुत ही दुखी हुई और उसे गुस्सा भी आया। दासी वापस आकर रानी को सारी बात बता दी ऐसा सुनकर रानी बहुत दुखी हुई और अपने भाग्य को कोसने लगी। उधर, पूजा समाप्त करने के बाद रानी की बहन  सोचने लगी कि मेरी बहन की दासी आई थी, परंतु मैं व्रत के कारण दासी के बात का जबाब नहीं दे सकी इससे दासी और मेरी बहन  बहुत दुखी हुई होगी।

रानी बहन कथा सुनकर और पूजा समाप्त करके अपनी बहन के घर आई और कहने लगी- हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी।  तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं बात नहीं कर सकी बताओ दासी क्यों गई थी।

रानी बोली- बहन, तुमसे क्या छिपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था। ऐसा कहते-कहते रानी रोने लगी। उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को बताई। रानी की बहन बोली- देखो बहन, भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। तुम्हे भी वृहस्पतिवार का व्रत रखना चाहिए ऐसा करने से वृहस्पतिदेव तुम्हारी सभी इच्छाये जरूर पूरी करेंगे।

रानी की बहन बोली – देखो शायद तुम्हारे घर में कुछ अनाज रखा हो।  रानी मन में सोचने लगी की मेरे पास खाने के लिए तो कुछ भी नही है अनाज कहा से होगा फिर भी अपने बहन के कहने के अनुसार   उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया।  यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई।  दासी रानी से कहने लगी- हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ कर हम भी व्रत कर सकें। तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा।

बहन बोली – बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल, गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करो उसके बाद केले की जड़ में पूजन करो तथा दीपक जलाकर, व्रत कथा सुनो और पीला भोजन ही करो। ऐसा करने से बृहस्पतिदेव प्रसन्न होंगे और धन-धान्य से परिपूर्ण करेंगे। ऐसा बोलकर रानी की बहन अपने घर लौट गई।

वृहस्पतिवार के व्रत करने के बाद रानी की स्थिति

सात दिन बाद जब वृहस्पतिवार आया तब रानी और दासी ने व्रत रखा। घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं। उसके बाद चना गुड़ से केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया। पीला भोजन कहां से आए इस बात को लेकर दोनों बहुत दुखी थे। चूंकि उन्होंने व्रत रखा था इस कारण बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे  इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति के वेश धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दोनों प्रसन्न हुई और फिर दोनों साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया।

इसके बाद रानी और दासी प्रत्येक गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी।  बृहस्पति देव की कृपा से उनके पास पुनः धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह पूजा तथा व्रत करने में आलस्य करने लगी तब दासी बोली- देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब भगवान बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो फिर से आलस्य हो रहा है।

रानी को समझाते हुए दासी बोलती है कि बड़ी मुश्किल से हमने यह धन प्राप्त किया है इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए, जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी तथा ऐसा करने से पितर भी प्रसन्न होंगे। दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी, जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा।

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राजा का साधु वेश में वृहस्पतिदेव से मिलन

इधर राजा दूसरे नगर में जाकर बस गया। वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा। वही राजा एक दिन एक वृक्ष के नीचे बैठ अपनी पूर्व दशा पर विचार कर रोने लगा। उस दिन बृहस्पतिवार था। तभी वहां बृहस्पति देव साधु के रूप में राजा के पास आए और बोले “हे मनुष्य, तू इस जंगल में किस चिंता में बैठा है?”

तब राजा बोला “हे महाराज, आप सब कुछ जानते हैं।” इतना कहकर राजा अपनी कहानी सुनाकर रो पड़ा। बृहस्पति देव बोले “देखो बेटा, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ है लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। तुम गुरुवार के दिन बृहस्पति देव का पाठ करो। दो पैसे के चने और गुड़ को लेकर जल के लोटे में शक्कर डालकर वह अमृत और प्रसाद अपने परिवार के सदस्यों और कथा सुनने वालों में बांट दो। स्वयं भी प्रसाद और चरणामृत लो। भगवान तुम्हारा अवश्य कल्याण करेंगे।”

साधु महाराज उसी समय बृहस्पतिदेव की महिमा युक्त कथा सुनाते हुए कहने लगे –

प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था वह बहुत ही गरीब था उसके कोई भी संतान नहीं थे। ब्राह्मण की स्त्री बहुत ही गन्दा रहती थी वह न तो स्नान  करती  ना किसी देवता का पूजन ही करती थी। प्रातः काल उठते ही सर्वप्रथम भोजन करती बाद में कोई अन्य कार्य करती थी।  इससे ब्राह्मण देवता यह सब देखर दुखी रहते थे बहुत कोशिश करने के बाद भी उस ब्राह्मण की स्त्री के स्वभाव में कोई सुधर नहीं हुआ।

भगवान की कृपा से ब्राह्मण के घर में कन्या का जन्म हुआ वह कन्या अपने पिता के घर में बड़ी होने लगी। वह बालिका प्रातः स्नान करके विष्णु भगवान का जाप करने लगी।  बृहस्पतिवार का व्रत करने लगी। पूजा पाठ को समाप्त करके स्कूल जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ  लेकर जाती और स्कूल जाने के रास्ते में डाल देती थी।  वही जौ स्वर्ण के हो जाते तो लौटते समय उनको चुनकर घर ले आती थी।

एक दिन वह बालिका सूप में उस सोने के जौ को फटक कर साफ कर रही थी उसकी मां ने देख लिया और कहा बेटी सोने के जौ को फटकने के लिए सोने का सूप होना चाहिए। दूसरे दिन गुरुवार का दिन था उस दिन कन्या ने व्रत रखा और बृहस्पति देव से प्रार्थना करके कहा हे प्रभु मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो।  बृहस्पति देव ने उसके प्रार्थना स्वीकार कर ली।

रोज की तरह वह कन्या स्कुल के रास्ते में जौ डालते हुए गई जब लौटकर आ रही थी तब उसे मार्ग में बृहस्पति देव की कृपा से सोने का सूप मिला। उसे वह घर ले आई  और उससे जौ साफ करने लगी परंतु उसकी मां का वही ढंग रहा।

एक़  दिन की बात है कि वह कन्या सोने के सूप से जब जौ साफ कर रही थी तब उस समय शहर का राजपुत्र वहां से होकर निकल rahaa था।  इस कन्या के रुप और कार्य को देख कर मोहित हो गया।  राजपूत अपने घर जाकर भोजन तथा जल त्यागकर उदास होकर लेट गया। राजा को जब इस बात का पता लगा तो अपने प्रधानमंत्रियों के साथ अपने पुत्र के पास गए।

बोले हे बेटा तुम्हें किस बात का कष्ट है किसी ने अपमान किया है अथवा कोई और कारण है बताओ मैं वह कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता।  इस  सुनकर राजकुमार बोला मुझे आपकी कृपा से किसी बात का दुख नहीं है किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है परंतु मैं उस लड़की के साथ विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में जौ को साफ कर रही थी। यह सुनकर राजा आश्चर्य में पड़ा और बोला। हे !  पुत्र  इस तरह की कन्या का पता तुम ही लगाओ मैं उसके साथ तुम्हारा विवाह अवश्य ही करवा दूंगा।

राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बतलाया मंत्री उस लड़की के घर गए और ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ संपन्न हो गया।

इधर कन्या के घर से जाते हैं पहले की तरह ही उस ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी आ गई। भोजन मिलना मुश्किल होने लगा। एक दिन दुखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गए बेटी ने पिता की दुखी अवस्था को देखकर अपनी मां का समाचार जाना कन्या ने अपने पिता को बहुत सा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया।  इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत हुआ। कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के यहां गया और अपना हाल बताया तो लड़की बोली है पिताजी आप माताजी को यहाँ लेकर आइये मैं उसे वृहस्पति व्रत करने  की विधि बता दूंगी जिससे गरीबी दूर हो जायेगी।

वह ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर पहुंचे तो पुत्री अपनी मां को समझाने लगी।  हे मां तुम प्रात: काल उठकर प्रथम स्नानादि करके विष्णु भगवान का पूजन करो तो सब दरिद्रता दूर हो जायेगी। किन्तु उसकी मां ने एक भी बात नहीं मानी और प्रात: काल उठकर अपनी पुत्री के बच्चों का जूठन कहना खा लेती थी। एक  दिन उसकी पुत्री को बहुत गुस्सा आया और एक रात को कमरे से सभी सामान निकाल दिया और अपनी मां को उसने बंद कर दिया। प्रात: काल उसमें से निकाला स्नानादि करवाकर पूजा पाठ करवाया तो उसकी मां की बुद्धि ठीक हो गई और फिर प्रतिदिन बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी।  इस व्रत के प्रभाव से उसकी मां भी बहुत ही धनवान तथा पुत्रवती हो गई और बृहस्पति जी के प्रभाव से स्वर्ग को प्राप्त हुई। वह ब्राह्मण भी इस लोक का सुख भोग कर स्वर्ग को प्राप्त हुआ। ऐसा कहकर साधू देवता वहां से अंतर्ध्यान हो गए

राजा के द्वारा यज्ञ का आयोजन और रानी की हार की चोरी

शनै: शनै: समय व्यतीत होने पर फिर वही बृहस्पतिवार का दिन आया राजा जंगल से लकड़ी काटकर किसी शहर में बेचने गया उसे उस दिन और दिन से अधिक धन मिला । वृहस्पतिवार के दिन ही नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा शहर में यह घोषणा करा दी कि कोई भी मनुष्य अपने घर भोजन बनाएगा सभी लोग मेरे यहां भोजन करने आएगा इस आज्ञा को जो न मानेगा उसके लिए फांसी की सजा दी जाएगी।  ऐसी घोषणा संपूर्ण नगर में करवा दी गई। राजा की आज्ञा अनुसार शहर के सभी लोग भोजन करने गए लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुंचा।  इसलिए राजा उसको अपने साथ घर ले गए और घर में भोजन कराने लगे। लकड़हारा भोजन कर अपने घर चला गया।  रानी जब अपने कमरे में आई तो उसकी दृष्टि  उस कहतीपर पड़ी जिस पर उसका हर लटका हुआ था वहां पर हार नहीं दिखाई दिया। रानी ने निश्चय किया कि मेरा हार वही व्यक्ति ने चुरा लिया जो सबसे बाद में खाना खाया था। उसी समय पुलिस बुलवाकर उसको जेल खाने में डलवा दिया।

जब राजा जेल खाने में गया तो बहुत दुखी होकर विचार करने लगा कि न जाने कौन से पूर्व जन्म के कर्म से मुझे यह सब दुख भोगने को मिल रहा है और उसी साधु को याद करने लगा जो कि जंगल में मिला था।  उसी समय तत्काल बृहस्पतिदेव साधू के रूप में प्रकट हो गए और उसके दशा को देख कर कहने लगे अरे मूर्ख तूने बृहस्पति देवता की कथा नहीं की इसी कारण तुम्हे ऐसा दुख प्राप्त हुआ है। अब चिंता मत कर वृहस्पतिवार के दिन जेल खाने के दरवाजे पर चार पैसा पड़े मिलेंगे उससे तुम बृहस्पति देव की पूजा करना तेरे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।

वृहस्पतिवार के दिन उसे चार पैसे मिले राजा ने कथा कहीं उसी रात्रि को वृहस्पतिदेव ने उसे नगर के राजा को स्वप्न में कहा –

हे ! राजा तुमने जिस आदमी को जेल खाने में बंद कर दिया है वह निर्दोष है वह राजा है उसे छोड़ देना रानी का हार तो उसके खूंटी पर ही पर लटका हुआ है अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरे राज्य को नष्ट कर दूंगा।  इस तरह के रात्रि स्वप्न को देख राजा प्रात:काल उठा और खूंटी पर टंगा हार देखकर आश्चर्य किया तथा लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी और राजा को योग्य सुंदर वस्त्र आभूषण देकर विदा किया।

राजा का नगर की ओर प्रवेश

गुरुदेव की आज्ञानुसार राजा अपने नगर को चल दिया राजा जब नगर के निकट पहुंचा तो उसने देखा की नगर में पहले से अधिक बाग़, तालाब और कुएं तथा बहुत सी धर्मशाला मंदिर आदि बने हुए है।  राजा ने पूछा किया किस का बाग और धर्मशाला है तब नगर के सब लोग कहने लगे कि यह सब रानी और बांदी के हैं तो राजा को आश्चर्य और गुस्सा भी आया। जब रानी ने यह खबर सुनी कि राजा आ रहे हैं तो उसने बांदी से कहा कि हे दासी देख राजा हमको कितनी बुरी हालत में छोड़ गए थे वह हमारी ऐसी हालत देख कर लौट ना जाएं इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी हो जा और जब राजा आए तो उन्हें अपने साथ लेकर आना।

जब राजा घर आये तब क्रोध करके अपनी तलवार निकाली और पूछने लगी यह बताओ कि यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ है तब उन्होंने कहा हमें यह सब धन बृहस्पति देव के इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है। राजा ने निश्चय किया सब लोग तो वृहस्पतिवार का पूजन और कथा कहते है परंतु मैं रोजाना दिन में तीन बार कहानी कहा करूंगा तथा रोज व्रत किया करूंगा। अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी रहती थी और दिन में तीन बार कहानी कहता।

राजा का अपने बहन के घर जाना

एक दिन राजा ने सोचा कि चलो अपनी बहन के यहां चलते है ऐसा निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो कर अपनी बहन के यहां चलने लगे। रास्ते उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लिए जा रहे हैं उन्हें रोककर राजा कहने लगा अरे भाइयों मेरे वृहस्पतिवार की कथा सुन लो तब लोग बोलने लगे मेरा आदमी मर गया है इसे अपने कथा की पड़ी है। परंतु कुछ आगे बढ़ने पर लोग बोला की हम सब कथा  सुनेंगे।  राजा ने दाल निकाली और जब कथा आधी हुई ही थी कि मुर्दा हिलने लग गया और जब कथा समाप्त हो गई तो राम-राम करके वह मनुष्य खड़ा हो गया।

राजा आगे बढ़ तब मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला राजा ने उसे देखा और उससे बोला अरे भाई आप मेरे बृहस्पतिवार की कथा सुन लो। किसान बोला जब तक मैं तेरी कथा सुनूँगा तब तक तो मई आधा खेत जोत लूंगा।  आप अपनी कथा किसी और को सुनाना इस तरह राजा आगे चलने लगा राजा के हटते ही बैल पछाड़  खाकर गिर गया तथा किसान के पेट में बहुत जोर से दर्द होने लगा। उस समय उसकी मां रोटी लेकर आई उसने जब यह सब देखा तो अपने पुत्र से पूछा  यह सब कैसे हुआ तब बेटे ने सभी हाल कह दिया  तब बुढ़िया दौड़कर उस घुड़सवार के पास गई और उससे बोली मैं तेरी कथा सुनूंगी तू अपनी कथा मेरे खेत पर ही चल कर कहना। राजा ने बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा सुनाया जिसके सुनते ही वह बैल खड़ा हो गया तथा किसान के पेट का दर्द बंद हो गया।

राजा अपनी बहन के घर पहुंच गया बहन ने भाई के खूब मेहमान -नवाजी  की दूसरे दिन प्रात:काल राजा सोकर उठा तो वह देखने लगा के सब लोग भोजन कर रहे हैं राजा ने अपनी बहन से कहा कि ऐसा कोई मनुष्य है जो भोजन नहीं किया है जो मेरे बृहस्पतिवार की कथा सुन ले। बहन बोली भैया यहाँ लोग भोजन करते हैं बाद में अन्य काम करते हैं अगर कोई पड़ोस में हो तो देखता हूं वह ऐसा कह कर देखने चली गई तो उसे कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने भोजन ना किया है।

राजा की बहन कुमार के घर में गया जिसका लड़का बीमार था उसे मालूम हुआ कि उनके यहां तीन रोज से किसी ने भोजन नहीं किया है अतः वह कुमार के घर गए जिसका लड़का बीमार था उसे मालूम हुआ कि उनके यहां तीन दिन  से किसी ने भोजन नहीं किया है रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुमार से कहा कुमार तैयार हो गया।  राजा ने जाकर बृहस्पतिवार की कथा कही जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक हो गया।

अब तो राजा की प्रशंसा होने लगी एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा कि हम अपने घर जाएंगे तुम भी तैयार हो जाओ राजा की बहन ने अपनी सास से पूछी तो सास बोली हां चली जाए परंतु अपने साथ बछो को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई का कोई औलाद नहीं है।  बहन अपने भाई से कहा भैया मैं तो चलूंगी परन्तु मेरे साथ कोई बालक नहीं जाएगा। राजा बोला जब कोई बालक नहीं जाएगा तब तुम जाकर क्या करोगे बड़े दुखी मन से राजा अपने नगर को लौट कर आन गया।

राजा ने अपनी रानी से कहा हम निरवंशी राजा हैं हमारा मुंह देखने का धर्म नहीं है। मैंने भोजन आदि भी नहीं किया है। रानी बोली हे प्रभु वृहस्पति  देव ने हमें सब कुछ दिया है हमें औलाद अवश्य देंगे। उसी रात को वृहस्पति देव ने राजा को सपने में कहा –  हे राजा उठो रानी गर्भ से है राजा को यह बात सुन कर बड़ी खुशी हूई तथा नवमे महीने में उसे गर्भ से एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ। तब राजा ने बोला स्त्री बिना भोजन के रह सकती है बिना कहे नहीं रह सकती जब मेरी बहन आये तब तुम उससे कुछ कहना मत रानी ने सुनकर हां कर दिया।

राजा के वृहस्पतिदेव का आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति

जब राजा की बहन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुश हुई तथा बधाई लेकर अपने भाई के यहां आई। रानी ने कहा घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई गधा चढ़कर चली आई। राजा की बहन बोली भाई मैं इस प्रकार ना करते तो तुम्हें औलाद कैसे मिलती वृहस्पतिदेव ऐसे ही है जिसके मन में जो कामनाएं होती हैं उसकी सभी मनोकामनाये पूर्ण करते हैं। जो सच्चे मन से बृहस्पतिवार का व्रत करता है तथा कथा पढता है अथवा सुनता है और दूसरों को सुनाता है वृहस्पतिदेव उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं भगवान बृहस्पति देव उनकी सदैव रक्षा करते हैं।

इस संसार में सच्चे ह्रदय से विष्णु भगवान जी का पूजन व्रत करने से वृहस्पतिदेव उसकी सभी मनोकामनाये पूर्ण करती है। जैसे सच्ची भावना से रानी और राजा ने उसकी कथा का गुणगान किया तो उनके सभी इच्छाएं बृहस्पति देव जी ने पूर्ण की इसलिए सब कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिए फिर से उसका मनन करते हुए वृहस्पतिदेव की जय बोलना चाहिए

2 thoughts on “वृहस्पतिवार व्रत कथा की महिमा”

  1. रमेश चंद मीना

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