सिंहस्थ कुम्भ मेला उज्जैन 2016 | Kumbh Mela Ujjain 2016

सिंहस्थ कुम्भ मेला उज्जैन 2016 | Kumbh Mela Ujjain 2016  22 अप्रैल से 21 मई 2016 के बीच शिप्रा नदी के तट पर स्थित महाकालेश्वर की नगरी “उज्जैन” में सिंहस्थ कुम्भ मेला/पर्व/स्नान का आयोजन होने जा रहा है।  उज्जैन में लगने वाले कुम्भ मेला को सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है। वृहस्पति ग्रह का सिंह राशि में होने के कारण इसे सिंहस्थ कुम्भ मेला कहा जाता है ?  क्योकि उस समय वृहस्पति/गुरु ग्रह सिंह राशि में तथा सूर्य मेष राशि में होते है।

सम्पूर्ण भारत में चार स्थानों पर कुम्भ मेला का आयोजन किया जाता है। प्रयाग, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन। प्रत्येक बारह वर्षों के अंतराल में सिंहस्थ कुम्भ मेला का आयोजन बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। शिप्रा नदी एवं नगर दोनों ही मोक्षदायिनी  है। पौराणिक मान्यता है कि महादेव शिव ने उज्जैन में ही महादानव त्रिपुर का वध किया था।

सिंहस्थ कुम्भ मेला

पवित्र क्षिप्रा नदी में महास्नान चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर वैशाख मास की पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में शाही स्नान के रूप में सम्पन्न होता है। सिंहस्थ कुम्भ महापर्व उज्जैन 2016 में प्रमुख शाही महास्नान तिथियां निम्न प्रकार से है।

सिंहस्थ कुम्भ मेला महास्नान का महत्व

हमारा भारतीय संस्कृति इतना समृद्ध है कि सम्पूर्ण देश में प्रत्येक दिन कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है और उस त्यौहार के पीछे अवश्य ही कोई कथा या पौराणिक धारणा छिपी हुई होती है।

कुम्भ व सिंहस्थ कुम्भ महापर्व जैसे आयोजनों के पीछे भी कथा प्रचलित है। पुराणों में इसकी कथा है। प्राचीन काल में हिमालय के समीप क्षीरोद नामक समुद्र तट पर देवताओं तथा दानवों ने एकत्र होकर फल प्राप्ति के लिए समुद्र-मंथन किया। परिणामस्वरूप जो चौदह 14 रत्न प्राप्त हुए उनमे श्री रम्भा, विष, वारुणी, अमिय, शंख। गजराज, धन्वन्तरि, धनु, तरु, चन्द्रमा, मणि और बाजि इनमें से अमृत से भरा हुआ कुम्भ ( घड़ा ) सबसे अंत में निकला। तब देवताओं को यह चिंता होने लगी कि यदि दानवों ने इस अमृत का पान कर लिया तो दानव भी अमर हो जाएंगे। इसलिए देवताओं ने इन्द्र के पुत्र जयंत को अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ जाने का संकेत किया। जयंत अमृत-कलश लेकर आकाश में उड़ गया और दानव उसे छीनने के लिए उसके पीछे-पीछे भागने लगे।

इस प्रकार अमृत-कलश को लेकर देवताओं व दानवों में संघर्ष छिड़ गया। दोनों पक्षों में 12 दिनों तक लड़ाई चलते रहा। इस दौरान छीना-झपटी में कुम्भ से अमृत की बूंदें छलक कर प्रयाग, हरिद्वार, नासिक तथा उज्जैन में गिरा अमृत गिरने से यह स्थान मोक्षदायिनी स्थल के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। अंत में  भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके कुम्भ को अपने हाथ में ले लिया और देवताओं को सब अमृत पिला दिया।  इन चारों स्थानों पर जिस-जिस समय अमृत गिरा उस काल विशेष में  सूर्य, चन्द्र तथा गुरू आदि ग्रह-जिस राशि नक्षत्रों में था उस उस राशि नक्षत्रों में आने पर उस उस स्थान विशेष में कुम्भ महापर्व मनाया जाने लगा।  वृहस्पति ग्रह प्रत्येक बारह वर्ष में उसी राशि तथा नक्षत्र में भ्रमण करते हुए आते है यही कारण है की ये चारो स्थानों में प्रत्येक बारह वर्ष के अंतराल में कुम्भ मेला/महास्नान का आयोजन किया जाता है। इसी प्रकार कुम्भ का धार्मिक महत्व विश्व प्रसिद्ध है।

1 thought on “सिंहस्थ कुम्भ मेला उज्जैन 2016 | Kumbh Mela Ujjain 2016”

  1. rakesh yadav

    sir mere right hand me four vivah line hai aur left hand me three vivah line hai; ‘please sir isaka matalab bataiye. please

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