First Lord in Different Houses Result in Hindi लग्न के स्वामी का विभिन्न भाव में फल

First Lord in Different Houses Result in Hindi लग्न के स्वामी का विभिन्न भाव में फल प्रथम वा लग्न के स्वामी का विभिन्न भाव में फल | First lord in different house प्रत्येक जन्मकुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव प्रथम अथवा लग्न होता है। लग्न और लग्न का स्वामी उस जातक को रिप्रेजेंट करता है जिसकी कुंडली होती है। प्रथम भाव, भावेश, राशि और राशि में स्थित ग्रहों के आधार पर जातक के शरीर, आकार, रंग रूप, स्वभाव इत्यादि का निर्धारण किया जाता है। प्रस्तुत लेख के माध्यम से हम यह बताना चाहते है कि लग्न का स्वामी जन्म के समय जिस किसी भी भाव में होता है तो वह जातक को क्या-क्या फल प्रदान करेगा।।

प्रथम वा लग्न के स्वामी का प्रथम भाव में फल 

यदि लग्न का स्वामी अपने ही भाव में स्थित हो तो जातक के लिए यह स्थिति बहुत ही शुभ मानी गई है इसका मुख्य कारण यह है कि ऐसी स्थिति होने पर लग्न मजबूत हो जाता है कहा भी गया है —

सैया भई कोतवाल तो डर काहे का 

अर्थात यदि घर का मालिक घर में ही कोतवाली करता है तो उस घर से मिलने वाले सभी फल सहज  रूप में मिलेगा  ही इसमें कोई संदेह नहीं है. शास्त्र में कहा गया है ——-

लोमेश संहिता के अनुसार —

लग्नेशे लग्नगे पुंसः सुदेहे स्वभुजकर्मी

मनस्वी चातिचांचल्यो  द्विभार्यो परगामी वा

अर्थात यदि लग्न का अधिपति लग्न में ही हो तो वैसा जातक शरीर से मजबूत वा आकर्षक स्वावलंबी, अपने मेहनत से धनोपार्जन करने वाला, चिंतन करने वाला अति चंचल स्वभाव वाला होता है तथा ऐसे जातक की दो पत्नी होती है अथवा अन्य स्त्रियों के प्रति आसक्त रहने वाला होता है।

प्रथम वा लग्न के स्वामी का दूसरे भाव में फल

दूसरा भाव धन, वाणी, नेत्र इत्यादि का होता है यदि इस स्थान में लग्न का अधिपति स्वयं बैठा है तो ऐसा जातक अपने प्रयास से धन कमाता है। वह अपने जीवन में धन की कमी नहीं महसूस करेगा और अपने सम्पूर्ण जीवन काल में खूब धन कमाएगा। यदि धन भाव का स्वामी भी अपने ही भाव में स्थित है तब तो क्या कहना ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में धन का अभाव महसूस नहीं करता है।  जीवन भर धन का लाभ मिलता रहता है । इनकी वाणी मधुर अथवा दम्भ युक्त होता है।  खाने और पीने का भी शौक़ीन होता है। इनकी रूचि  ज्योतिष तथा मनोविज्ञान जैसे विषयो में होती है।…….और पढ़े

प्रथम वा लग्न के स्वामी का तृतीय भाव में फल

तीसरा भाव सहोदर और परिश्रम का भाव है यदि इस भाव में लग्न का  स्वामी  बैठा है तो ऐसा जातक अपने परिश्रम से भविष्य का निर्माण करता है। यदि ऐसा व्यक्ति कभी भी अपने भाग्य को कोसना नहीं चाहिए। यदि लग्न का स्वामी इस भाव में है तो भाई से सम्बन्ध ख़राब हो सकता है। यदि लग्नाधिपति यहाँ शुभ स्थिति में है तो भाइयो के साथ बढ़िया सम्बन्ध होता है। ऐसा जातक लघु यात्रा का शौक़ीन होता है वह देश विदेश में भ्रमण करता है। इस व्यक्ति संगीतकार, नर्तक, अभिनेता, खिलाड़ी, लेखक आदि के रूप में प्रसिद्ध होता है। ऐसा जातक कला का पुजारी होता है कोई एक कला तो उसके पास अवश्य ही होता है।……….और पढ़े

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प्रथम वा लग्न के स्वामी का चतुर्थ भाव में फल

चतुर्थ भाव वाहन, बंधू-बान्धव, मकान, माता इत्यादि का भाव है यदि लग्न का स्वामी चतुर्थ स्थान  में स्थित है तो ऐसे जातक को उपर्युक्त विषय-वस्तु का सुख प्राप्त होता है।  ऐसा जातक अपने माता पिता से बहुत ही प्यार करता है और माता पिता के सुख का भागी बनता है। ऐसा जातक आध्यात्मिक विषयों में रुचि लेता है।  इसके लिए अपना कार्य बहुत ही प्यारा होता है।

लोमेश संहिता में कहा गया है…..

लग्नेशे दशमे तुर्ये पितृमातृसुखान्वितः

बहुभ्रातृयुतः कामी गुणसौदर्यसंयुतः।

अर्थात यदि लग्न वा प्रथम भाव का स्वामी चतुर्थ स्थान में है तो जातक को माता- पिता का सुख मिलता है। अनेक भाइयो का प्यार मिलता है। अत्यंत कामी गुणवान और सौन्दर्य से युक्त होता है।

प्रथम वा लग्न के स्वामी का पंचम भाव में फल

यदि लग्न का स्वामी पंचम भाव में स्थित है तो वैसा जातक बहुत ही चालाक होता है वह छोटी छोटी बातो को लेकर परेशान भी होते रहता है। पंचम भाव संतान का भाव होता है अतः यदि लग्नाधिपति इस स्थान में स्थित है तो जातक को अपने संतान से सुख के साथ साथ दुःख भी मिलता है।  संतान सुख में कमी भी देखा गया है। शास्त्रानुसार एक संतान की मृत्यु भी संभावित होती है।

ऐसा जातक तुनुकमिजाजी होता है तुरत ही किसी बात पर गुस्सा जाता है। ऐसे जातक को सामाजिक कार्यो में रूचि होती है। आप प्रशासनिक अधिकारी होते है। लाभ के पद पर कार्य करते है। कई बार तो ऐसा जातक बीच में ही पढाई छोड़कर कार्य करना शुरू कर देता है।

लोमेश संहिता में कहा गया है —- 

लग्नेशे पंचमे मानी सुतै: सौख्यम च मध्यम

प्रथमापत्यनाशः स्यात क्रोधी राजप्रवेशिक: ।

अर्थात ऐसा व्यक्ति क्रोधी राजकार्य करने वाला होता है। जातक के प्रथम पुत्र की हानि होती है। पुत्र तथा मित्र का सुख कम मिलता है।

प्रथम वा लग्न के स्वामी का षष्ठ भाव में फल

यदि लग्न का स्वामी छठे भाव में हो तो वह व्यक्ति शरीर से कमजोर होता है। प्रायः वह कर्ज लेते हुए देखा गया है परन्तु यदि लग्नेश की दशा चल रही है तो वैसी स्थिति में जातक कर्ज वा ऋण से मुक्त भी हो जाता है वह किसी न किसी प्रकार से कर्ज से मुक्ति पाना चाहता है। ऐसा जातक सेना अथवा पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी करने वाला होता है और यदि वहां नौकरी नहीं भी करेगा तो उसका स्वभाव सेनानायक जैसा ही होगा। आप मेडिकल से जुड़े कार्य कर सकते है अर्थात डॉक्टर बन सकते है। ऐसा व्यक्ति दुसरो के कार्यो में हस्तक्षेप करता है।

लोमेश संहिता के अनुसार —

लग्नेशे सहजे षष्ठे सिंहतुल्यपराक्रमी 

सर्वसम्पद्युतो मानी द्विभार्यो मतिमान सुखी।

अर्थात ऐसा जातक सिंह के सामान पराक्रमी बलशाली होता है। धन धान्य से परिपूर्ण होता है तथा  दो पत्नी का सुख प्राप्त होता है।

प्रथम वा लग्न के स्वामी का सप्तम भाव में फल

यदि लग्न का स्वामी सप्तम भाव में हो तो ऐसे जातक को दो पत्नी का सुख मिलता है। कभी-कभी एक पत्नी को मरते हुए भी देखा गया है। आप अपने मन के अनुसार अपनी पत्नी का चयन करेंगे है। ऐसा जातक हमेशा देश – विदेश भ्रमण करता है अथवा देश – विदेश में अपना निवास स्थान बनाता है।    ऐसा जातक अपने पारिवारिक माहौल से ऊबकर सन्यासी भी बन जाता है।

लोमेश संहिता में भी यही कहा गया है —  

लग्नेश सप्तमे यस्य भार्या तस्य न जीवति

विरक्तो वा प्रवासी च दरिद्रो वा नृपोपि वा।

परंतु यह सब सप्तम स्थान में स्थित ग्रह के ऊपर निर्भर करता है यदि इस भाव में अशुभ ग्रह बैठा है तो अशुभ फल की प्राप्ति होगी और यदि शुभ ग्रह बैठा है तो शुभ फल की प्राप्ति होगी।

प्रथम वा लग्न के स्वामी का अष्टम भाव में फल

यदि लग्न का स्वामी अष्टम भाव में स्थित है तो ऐसा जातक बहुत ही विद्वान होता है। आप जोखिम वाला कार्य करना पसंद करते है आप चाहते है की मैं ऐसा काम करू जिससे खूब पैसा आये तथा खूब नाम और यश मिले और आप इसमें कुछ हद तक सफल भी होते है। आपको तंत्र मन्त्र में रूचि होती है।  आध्यात्मिक कार्यो में आप बढ़-चढ़कर भाग लेते है।

लोमेश संहिता में कहा गया है —–

लग्नेश व्ययगे चाष्टे  शिल्पविद्याविशारद :

द्युति चौरो महाक्रोधी परभार्यातिभोगकृता।

अर्थात ऐसा जातक शिल्प विद्या में रूचि रखता है। जुआ तथा चोरी जैसे काम करना पसंद करता है।  आप अत्यंत ही क्रोधी स्वभाव के होते है तथा अन्य स्त्रियों का उपभोग करना पसंद करते है।

प्रथम वा लग्न के स्वामी का नवम भाव में फल

किसी भी जातक की कुंडली में नवम भाव भाग्य तथा पिता का स्थान होता है। यदि प्रथम भाव का स्वामी नवम भाव में है तो ऐसा जातक धार्मिक विचारो से युक्त होता है। तथा धार्मिक कार्यो में आप बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है। आप बहुत ही भाग्यवान व्यक्ति है। आप को पिता का प्यार तथा धन सुख अवश्य ही मिलेगा।  आपको  अपने पिता के कथनानुसार कार्य करने के लिए कृत संकल्प होते है।

लोमेश संहिता में कहा गया है —-

लग्नेशे नवमे पुंसां भाग्यवान जनवल्लभ

विष्णुभक्तो पटुर्वाग्भी  पुत्रदारधनैरयुक्त।

अर्थात यदि लग्नाधिपति नवम स्थान हो तो वह जातक भाग्यवान लोगो का प्रतिनिधित्वकर्ता  होता है। आप विष्णु के भक्त होंगे। आप बोलने में कुशल पुत्र पत्नी तथा धन से युक्त होंगे।

प्रथम वा लग्न के स्वामी का दशम भाव में फल

जन्मकुंडली में दशम भाव कर्म भाव कहलाता है। किसी भी जातक का कर्म कैसा होगा उसका निर्धारण इसी भाव के आधार पर किया जाता है। यदि लग्न का स्वामी दशम भाव में स्थित है तो वैसा जातक अपने परिश्रम के बल पर बहुत ही आगे बढ़ता है। परन्तु यह तब जब आप तन मन और धन से कार्य करे तब अन्यथा काम के लिए भटकते रह सकते है। आप जैसे व्यक्ति अपने अपने हाथ से घर का निर्माण करा कर उस घर में रहते है। यदि शुभ ग्रहो के प्रभाव से प्रभावित है तो आपके पास अचूक प्रॉपर्टी होगी। आप जिस भी क्षेत्र में काम करेंगे उसमे अपना नाम रौशन करेंगे।

लोमेश संहिता में कहा गया है ——

लग्नेशे दशमे तुर्ये पितृमातृसुखान्वितः

बहुभ्रातृयुतः कामी गुणसौन्दर्यसंयुतः।

अर्थात यदि लग्नाधिपति  दशम स्थान में है तो जातक को माता- पिता का सुख मिलता है। अनेक भाइयो का प्यार मिलता है। अत्यंत कामी गुणवान और सौन्दर्य से युक्त होता है।

प्रथम वा लग्न के स्वामी का एकादश भाव में फल

जन्मकुंडली में एकादश भाव को लाभ भाव भी कहा जाता है। यह स्थान जातक के इच्छापूर्ति का स्थान होता है अतः यदि किसी जातक के कुंडली में लग्न वा प्रथम स्थान का स्वामी इस भाव में होता है तो येन केन प्रकारेण उसकी इच्छापूर्ति होती है। ऐसा जातक अपने भाइयो या बहनो में सबसे बड़ा होता है। आप अपने व्यवसाय में मनोनुकूल लाभ कमाते है और यदि लग्नेश की दशा चल रही हो तो क्या कहना।

लोमेश संहिता में कहा गया है  —–

लग्नेशे द्वितीये लाभे स लाभी पंडितो नरः

सुशीलो धर्मवित्त मानी बहुदारगुणैर्युत:।

अर्थात यदि लग्नेश लाभ स्थान में हो तब ऐसा व्यक्ति सुशील, धार्मिक, अनेक पत्नियों वाला तथा विभिन्न गुणों से युक्त होता है। ऐसा जातक अनेक प्रकार से लाभ प्राप्त करने वाला होता है।

प्रथम वा लग्न के स्वामी का बारहवें भाव में फल

किसी भी जन्मकुंडली में बारहवां स्थान व्यय, हॉस्पिटल जेल इत्यादि का भाव होता है। इस भाव से पूर्व में कथित विषय-वस्तु के सम्बन्ध में फल की प्राप्ति होती है। इस जातक बहुत ही खर्चीला होता है। ऐसा जातक धार्मिक यात्रा पर जाता है। प्रायः ऐसे जातक को व्यवसाय में सफलता नहीं मिलती है यदि सफलता मिल भी जाती है तो अंतिम चरण में नुकसान भी हो जाता है। आप जैसे लोग सामाजिक कार्यो में अपना अहम् भूमिका निभाते है।

लोमेश संहिता में कहा गया है —–

लग्नेश व्ययगे चाष्टे शिल्पविद्याविशारद:

द्युति चौरो महाक्रोधी परभार्यातिभोगकृता।

अर्थात ऐसा जातक शिल्प विद्या में रूचि रखता है जुआ तथा चोरी जैसे काम करना पसंद करता है। आप अत्यंत ही क्रोधी स्वभाव के होते है तथा अन्य स्त्रियों का उपभोग करना पसंद करते है।

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