Learn Vedic Astrology in Hindi Part-2 | वैदिक ज्योतिष सीखें भाग-2

Learn Vedic Astrology in Hindi Part-2 | वैदिक ज्योतिष सीखें भाग-2  भारतीय ज्योतिष में सम्पूर्ण जीवन में होने वाली घटनाओ को बारह भाव में विभाजित किया गया है यह बारह भाव जीवन यात्रा का सार है इसी के आधार पर ज्योतिषी व्यक्ति के जीवन में होने वाली प्रत्येक घटनाओ के सम्बन्ध में भविष्य कथन करता है।  ईशोपनिषद में कहा गया है कि परब्रह्म पूर्ण है —

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

अर्थात वह परब्रह्म पूर्ण है और यह कार्यब्रह्म भी पूर्ण है; क्योंकि पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है तथा प्रलयकाल मे पूर्ण कार्यब्रह्म का पूर्णत्व लेकर अपने मे लीन करके पूर्ण परब्रह्म ही बचा रहता है।

उसी प्रकार ज्योतिष में परिकल्पित 12 भाव भी पूर्ण है ऐसा मानना चाहिए इस 12 भाव में जीवन की सम्पूर्ण गतिविधि समाहित है। जीवन के बारह भागो को 360 डिग्री में बांट कर एक वृत को तैयार किया गया है,यही ज्योतिष के बारह भाव कहलाते है। एक भाव की समयावधि और माप 30 डिग्री की होती है।

आइये आज हम Learn Vedic Astrology in Hindi part – 2 में कुंडली के बारह भाव के सम्बन्ध में बताने जा रहा हूँ।

प्रथम भाव | लग्न भाव | First House | Ascendant

प्रथम भाव अथवा लग्न जातक का शरीर, रूप, रंग, आकार इत्यादि को बताता है। यह भाव सबसे महत्त्वपूर्ण भाव है क्योकि कहा गया है की यदि लग्न मजबूत है तो जातक जीवन के प्रत्येक क्षण का आनंद लेने में समर्थ होगा यदि लग्न कमजोर है तो उसी प्रकार है जिस प्रकार सोये हुए सिंह के शरीर में मृग प्रवेश नही करता है।

द्वितीय भाव | Second House

वहीं दुसरा भाव मुख, वाणी,धन, कुटुंब इत्यादि का है। इसका मुख्य कारण है की जब जातक का जन्म होता है तब सर्वप्रथम बच्चा रोने की क्रिया करता है रोने की क्रिया में मुख से आवाज भी निकलता है इसलिए यह स्थान वाणी का होता है। उसी प्रकार बच्चे के शरीर का लालन-पालन करने के लिए धन की जरूरत होती है इसलिए यह स्थान धन का भी होता है इसी प्रकार अन्य कारकत्व को समझना चाहिए।

तृतीय भाव | Third House

तृतीय भाव सहज वा भ्रातृ, परिश्रम, स्मरण शक्ति, लघु यात्रा इत्यादि का भाव कहलाता है। किसी भी जातक को अपने शरीर की रक्षा करने के लिये छोटे भाई-बहन, तन ढकने के लिए कपडे, आदि की आवश्यकता होती है होते है. इस समय जातक चलना-फिरना प्रारम्भ करता है, अपने हाथ से कोई समान लेकर फेंकना शुरू कर देता है खेलना शुरू कर देता है खेलने के लिए साथी की तलाश होती है इस कारण उपर्युक्त विषय का सम्बन्ध इस भाव से है।

चतुर्थ भाव | Fourth House

चतुर्थ भाव सुख भाव कहलाता है इस भाव से घर,मकान, वाहन माता इत्यादि को देखा जाता है। जब जातक चलने-फिरने लगता है तो उसे सुविधा और सुरक्षा की आवश्यकता होती है व्यक्ति धन कमाकर लाता है तो उसे रखने के लिए सुरक्षित जगह की जरुरत होती है अतः यह स्थान घर कहलाता है इसी प्रकार अन्य के सम्बन्ध में विचार करना चाहिए।

पंचम भाव | Fifth House

पंचम भाव से संतान, शिक्षा, लक्ष्मी स्थान, देवता, राजशासन, मंत्री, आत्मा, प्राण, पेट इत्यादि का विचार किया जाता है। जब जातक को सुख-सुविधा मिल जाता है तो उसे भोगने के लिए यह स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिये और शरीर के द्वारा शरीर को मर्यादित रखने के लिये तथा संतान वृद्धि के लिए इस स्थान का विचार किया जाता है।

षष्ठ भाव | Sixth House

षष्ठ भाव से रोग, दुःख, शत्रु, चोर-चोरी,अस्त्र-शास्त्र, ऋण, अपमान इत्यादि का विचार किया जाता है जब शरीर को सुख की अनुभूति होगी तो स्वाभाविक है की दुःख की भी अनुभूति होगी इस कारण इस भाव का सम्बन्ध रोग,ऋण इत्यादि का भाव है। जब जातक के पास धन होगी तो उस धन का हरण भी हो सकता है इस कारण यह भाव चोर और चोरी का भी है इसी प्रकार अपने बुद्धि का इस्तेमाल करे।

सप्तम भाव | Seventh House

सप्तम भाव से पति, पत्नी यात्रा काम वासना, व्यापार पार्टनरशिप में काम इत्यादि का विचार किया जाता है। शरीर अपने द्वारा जो भी कार्य करता है वह जीवन के क्षेत्र को विस्तार मे लाने के लिये प्रयोग मे लाया जाता है इसका विचार इस भाव से किया जाता है।

अष्टम भाव | Eighth House

अष्टम भाव अपमान, आयु, मृत्यु, मानसिक, चिंता, क्लेश, बदनामी, स्त्री का सौभाग्य तथा पति का जीवित रहना इत्यादि का भाव है। जब जातक कोई काम करता है तो उसमे जोखिम भी उठानी पड़ती है उसमे उसे अपमान भी हो सकता है मृत्यु भी हो सकती है अतः यह भाव उपर्युक्त विषय से सम्बन्धित है।

नवम भाव | Ninth House

नवम भाव भाग्योदय, पिता, पूजा, गुरु, उत्तम वंश इत्यादि का विचार इस भाव से किया जाता है। यह स्थान मृत्यु के बाद का स्थान है इस समय जातक मृत्यु से लड़कर अपने भाग्य का निर्माण करता है। जीवन को आगे बढ़ने के लिए पूजा-पाठ, गुरु इत्यादि की जरुरत होती जिसकी पूर्ति इस भाव के दवारा होती है।

दशम भाव | Tenth House

दशम भाव , कर्म, व्यापर, इज्जत, मान-सम्मान, यश, आचार-विचार, नौकरी इत्यादि का भाव है। व्यक्ति जीवन के क्षेत्र को विस्तार मे लाने के लिये अपने शरीर जो भी मेहनत करता है उससे सम्बन्धित भाव है। यह वह स्थान है तो जो यह तय करता है की कोई भी जातक अपने जीवन क्षेत्र में क्या करेगा तथा कितना आगे बढ़ेगा।

एकादश भाव | Eleventh House

एकादश भाव से लाभ, इच्छा पूर्ति, बड़ा भाई, कर्म से मिलने वाला धन, माता की मृत्यु इत्यादि का विचार करना चाहिए यह स्पष्ट है कि यदि आप मेहनत करेंगे तो अवश्य ही फल की कामना करेंगे यह वही स्थान है जो यह बताएगा कि आपके द्वारा कृत कर्म का कितना फल मिलेगा

द्वादश भाव | Twelfth House

द्वादश भाव से व्यय, मोक्ष, शैय्या सुख, हानि, जेल, विदेश इत्यादि का विचार करना चाहिए। बारहवां भाव शरीर को स्थिरता प्रदान करता है। शरीर की ऊर्जा का ट्रांसफॉर्मेशन भी इसी भाव से होता है जातक शरीर को मानसिक रूप से निर्धारित स्थान पर ले जाने में समर्थ होता है यह भाव शरीर की अंतिम स्थिति का कारण भी है जहां से शरीर का निस्तारण होकर फिर से नए शरीर का निर्माण होना प्रारम्भ होता है इस कारण से ही इस स्थान को मोक्ष भाव भी कहा जाता है। यह भाव इस बात का भी संकेत देता है कि पूर्व जन्म में आप क्या थे तथा आप की मृत्यु कैसे हुई।

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