108 Name of Sun | सूर्य देव के 108 नाम के जप से बुद्धि बढ़ती है

108 Name of Sun | सूर्य देव के 108 नाम के जप से बुद्धि बढ़ती है

समस्त जगत को प्रकाशित करने वाले, विश्व नियामक, सृष्टि पालक,  दृश्यमान और  अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले भगवान् सूर्य देव को जो भक्त सूर्योदय काल में अत्यंत श्रद्धा भाव से, एकनिष्ठ  होकर उनके एक सौ आठ (108 ) नामों का जप प्रतिदिन करता हैं वह तीक्ष्ण बुद्धि, धन-धान्य, ऐश्वर्य, मान-सम्मान, विद्या तथा मनोवांछित फल को शीघ्र ही प्राप्त कर लेता है।

भगवान् सूर्य के नाम पाठ की शुरुआत कब से करें ?

वस्तुतः सभी देवों में भगवान सूर्य देव एक मात्र ऐसे देव हैं जो साक्षात दृश्यमान हैं। इनकी कृपा से ही भूलोक में लोग कर्मशील होकर अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करते हैं। भगवान्  सूर्य देव के 108 नाम का जप शुभ काल में प्रारम्भ करना चाहिए। जानें ! क्या है सूर्य ग्रह शांति हेतु मंत्र पूजा विधि ?

  • तिथि – षष्ठी, सप्तमी, 
  • वार – रविवार
  • नक्षत्र – कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा अषाढा 
  • पक्ष – शुक्ल
  • अयन – उत्तरायण 

उपर्युक्त तिथि, वार, नक्षत्र, पक्ष, अयन में सूर्य देव की संकल्प पूर्वक 108 नाम का जप आरम्भ करने से शीघ्र ही उत्तम फल की प्राप्ति होती है।

सूर्योsर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क: सविता रवि: ।
गभस्तिमानज: कालो मृत्युर्धाता प्रभाकर: ।।1 ।।

पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वयुश्च परायणम ।
सोमो बृहस्पति: शुक्रो बुधोsड़्गारक एव च ।।2 ।।

इन्द्रो विश्वस्वान दीप्तांशु: शुचि: शौरि: शनैश्चर: ।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वरुणो यम: ।।3 ।।

वैद्युतो जाठरश्चाग्निरैन्धनस्तेजसां पति: ।
धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदाड़्गो वेदवाहन: ।।4।।

कृतं तत्र द्वापरश्च कलि: सर्वमलाश्रय: ।
कला काष्ठा मुहूर्ताश्च क्षपा यामस्तया क्षण: ।।5।।

संवत्सरकरोsश्वत्थ: कालचक्रो विभावसु: ।
पुरुष: शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्त: सनातन: ।।6।।

कालाध्यक्ष: प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुद: ।
वरुण सागरोsशुश्च जीमूतो जीवनोsरिहा ।।7।।

भूताश्रयो भूतपति: सर्वलोकनमस्कृत: ।
स्रष्टा संवर्तको वह्रि सर्वलोकनमस्कृत: ।।8।।

अनन्त कपिलो भानु: कामद: सर्वतो मुख: ।
जयो विशालो वरद: सर्वधातुनिषेचिता ।।9।।

मन: सुपर्णो भूतादि: शीघ्रग: प्राणधारक: ।
धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवोsअदिते: सुत: ।।10।।

द्वादशात्मारविन्दाक्ष: पिता माता पितामह: ।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम ।।11।।

देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुख: ।
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेय करुणान्वित: ।।12।।

एतद वै कीर्तनीयस्य सूर्यस्यामिततेजस: ।
नामाष्टकशतकं चेदं प्रोक्तमेतत स्वयंभुवा ।।13।।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *